begunkodar railway station, ट्रेन मे सफर करना किसको अच्छा नही लगता। लेकिन ट्रेन का ये सफर तब अग्रेजी के सफर में तब्दील हो जाता है जब बंगाल का एक छोटा सा रेलवे स्टेशन बेगुनकोडारआता है। जिन लोगो के ट्रेन का सफर इस रेलवे स्टेशन से होकर गुजरता है। वो लोग इस रेलवे स्टेशन के आते ही सहम जाते है और अपनी अपनी बोगियो की खिडकिया बन्द कर देते है।
ये डर सिर्फ लोगो में नही बल्कि ट्रेन को चलाने वाले लोको पायलट के अन्दर भी होता है। जैसे ही ये ट्रेन इस रेलवे स्टेशन के पास आती है। लोको पायलट ट्रेन की रफ्तार को तेज कर देता है ताकि जल्दी से जल्दी ट्रेन इस स्टेशन से होकर गुजर जाये। आखिर क्यो इस स्टेशन को लेकर लोगो में इतना डर है। आखिर लोगो के इस डर की वजह क्या है। इस लेख में हम आपको इस स्टेशन और लोगो में इस स्टेशन को लेकर डर की वजह को डिटेल में बताने वाले है।

begunkodar railway station details in hindi
हम जिस रेलवे स्टेशन की बात कर रहे हैं उस रेलवे स्टेशन का नाम है बेगुनकोडाेर। यह रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल के पुरुलिया नाम के जिले में है। begunkodar नाम का एक गांव है पुरूलिया जिले से तकरीनब 60 किलोमीटर दूर है। इस रेलवे स्टेशन को सथांल की राजकुमारी श्रीमती लाचन देवी ने बनवाया था।
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begunkodar railway station आते ही लोग डर क्यो जाते है
इस रेलवे स्टेशन को इसलिए बनवाया गया था ताकि गांव में रहने वाले लोगों को ट्रेन का सफर करने के लिए पुरुलिया जिले ना जाना पड़े। लेकिन इस स्टेशन के बनने के कुछ दिन बाद ही यह स्टेशन एक हांटेट स्टेशन बन गया। यहां पर सबसे पहले जो स्टेशन मास्टर आया। उसका नाम था मोहन।
मोहन के अनुसार उसने कई बार इस रेलवे स्टेशन पर एक लड़की को दौड़ते हुए देखा। उसने देखा कि कभी एक लड़की ट्रेन की रफ्तार के साथ दौड़ रही है तो कभी वो 50 की स्पीड से चल रही ट्रेन के आगे आगे दौड़ रही है। मोहन ने उस लडकी को कई बार ट्रेन के ऊपर दौडते हुए भी देखा।
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धीरे धीरे इस स्टेशन को लेकर ये बात गांव वालो के बीच फैलने लगी कि इस स्टेशन पर किसी लड़की की आत्मा का साया है। गांव वालो के अनुसार एक लड़की ट्रेन को पकड़ने के चक्कर में ट्रेन के नीचे आकर कटकर मर गई थी। इसलिए अब उसकी आत्मा यहा आने हर ट्रेन को पकड़ने की कोशिश कर रही है।

फिलहाल बात अगर इस ट्रेन पर काम करने वाले पहले स्टेशन मास्टर मोहन की करे तो मोहन ने इस स्टेशन पर काम करने से मना कर दिया। वो रात में अपनी ड्यूटी ना करने का बहाने बनाने लगा। वो कुछ दिनो की छुट्टी लेकर अपने घर चला गया। लेकिन कुछ दिनो के बाद वो अपने घर में मृत अवस्था में पाया गया।
मोहन की मौत के बाद तो लोगो ने ये मान लिया कि इस रेलवे स्टेशन पर कोई ना कोई प्रेत आत्मा मौजूद है। इसके बाद गांव वालो ने इस रेलवे स्टेशन पर आना ही बन्द कर दिया। यहा रेलवे की तरफ से भी कोई स्टेशन मास्टर नही आना चाहता था। बाद में जब ये बाद रेलवे के जरिये भारत सरकार तक पहुंची तो भारत सरकार ने 1967 से इस यहा पर ट्रेन के रूकने पर रोक लगा दी।
इसके बाद कोई ट्रेन यहा नही रूकती थी। इस रेलवे स्टेशन को लेकर लोगो के बीच इतना खौफ था कि जब कोई ट्रेन यहा से होकर गुजरती थी। तो ट्रेन मे बैठे हुए लोग अपनी बोगियो की खिडकिया और दरवाजे बन्द कर लेते थे।
ये डर का माहौल ट्रेन को चलाने वाले लोको पायलट के अन्दर भी होता था। वो भी इस ट्रेन के आते ही ट्रेन की स्पीड तेज कर दिया करता था। ताकि जल्दी से जल्दी इस रेलवे स्टेशन से ट्रेन को निकाला जा सके।
फिलहाल इस स्टेशन पर ट्रेन के ना रूकने का सिलसिला 42 सालो तक चलता रहा। 42 साल के बाद 2009 में तब की रेलवे मंत्री ममता बनर्जी ने यहा आने वाली ट्रेन को दोबारा यहा रूकवाने का फैसला लिया। अब तकरीबन 13 सालो से यहा ट्रेने रूक रही है।
इस स्टेशन पर अब ट्रेने भले ही रूकने लगी हो लेकिन लोगो के बीच इस स्टेशन को लेकर भय अभी बना हुआ है। अभी भी रात में इस स्टेशन पर कोई भी दिखाई नही देता है। ये ट्रेन अपनी इसी हॉरर स्टोरी की वजह से बंगाल का एक टूरिज्म स्पॉट भी बन गया है।

My name is Ishat Zaidi and I am a travel blogger. Travelling is in my nature. I have travelled a lot in my life so far. During my travels, I am always in search of a new story. Apart from travelling, I am also very fond of writing stories and poems. I think that travelling is very important in life because when you travel around the world, you come across many lives. This also gives you a chance to understand your life. The more you travel, the more you will understand yourself and this world.